Friday, January 25, 2019

फिल्म समीक्षा मणिकर्णिका – द क्वीन ऑफ झांसी




शहज़ाद अहमद / नई दिल्ली
फिल्म बहुत भव्य बनी है, इसमें दो राय नहीं। कंगना जब भी फ्रेम में होती हैं तो वह जगमगा उठती हैं और, ऐसे दृश्य फिल्म में गिनती के हैं जब वह फ्रेम में नहीं हैं। इसे देखकर समझ भी आता है कि ये फिल्म कंगना ने झांसी की रानी की शौर्यगाथा जन जन तक पहुंचाने के लिए कम और अपना आभामंडल हिंदी पट्टी में विस्तारित करने के लिए ही बनाई है। तनु वेड्स मनु सीरीज और क्वीन जैसी फिल्मों को हिंदी पट्टी में बेशुमार प्यार मिला भी है। वजह? वहां कंगना एक आम इंसान दिखीं। मणिकर्णिका में चेहरे पर डाले गए तमाम स्पेशल इफेक्ट्स वाली लड़की कोई और है। हां, वह दृश्य जरूर बेहतरीन बन पड़ा है जहां अंग्रेज अफसर के सामने वह नजरें झुकाने से इंकार कर देती हैं।
फिल्म के संवाद अतिरेक भरे हैं। किरदार कोई बड़ा तब होता है जब दूसरे किरदार उसके बारे में बड़ी बातें करते हैं। अपने बारे में खुद ही बार-बार बोलना बड़बोलापन है और कंगना का किरदार पूरी फिल्म में इसका शिकार रहा है। फिल्म में दिखाए गए अंग्रेज किरदार बचकाने लगते हैं। अंकिता लोखंडे को ज्यादा मौका नहीं मिला है अपना दम दिखाने का और सुरेश ओबेरॉय हों, डैनी हों, जीशान अयूब हों या फिर जीशू सेनगुप्ता सब अपना काम निपटाते नजर आते हैं।कंगना के करियर में मणिकर्णिका अहम मोड़ है और ये फिल्म पद्मावत की तरह ही उनकी अदाकारी के झंडे भी गाड़ सकती थी, बशर्ते इसका निर्देशन संजय लीला भंसाली जैसे किसी सुलझे हुए तकनीशियन ने किया होता। कंगना के प्रशंसकों के लिए फिल्म इस वीकएंड का टाइमपास भले हो, लेकिन अगर आप बाजीराव मस्तानी या ट्रॉय जैसी फिल्मों के शौकीन हैं तो मणिकर्णिका से दूर रहना ही आपके लिए बेहतर है।

निर्देशक: कृष और कंगना रनौत

कलाकार: कंगना रनौत, अंकिता लोखंडे, जीशान अयूब आदि।

रेटिंग.  4.0 /5


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