Friday, March 29, 2019

फ़िल्म समीक्षा ( जंगली )


शहज़ाद अहमद / नई दिल्ली
कहानी: फिल्म की कहानी बहुत ही सरल और सहज है। राज नायर ( विद्युत जामवाल) शहर में काम करने वाला जानवरों का डॉक्टर है। 10 साल के लंबे अरसे बाद वह अपनी मां की बरसी पर अपने घर उड़ीसा लौटता है तो उसे कई नई बातों से दो-चार होना पड़ता है। उड़ीसा में उसके पिता हाथियों को संरक्षण प्रदान करने वाली एक सेंचुरी चलाते हैं। उसका पीछा करती हुई पत्रकार मीरा (आशा भट्ट) भी उसके साथ हो लेती है । वह राज के पिता पर एक आर्टिकल करना चाहती है। राज के घर पर उसके पिता के साथ सेंचुरी को सपॉर्ट करने के लिए उसकी बचपन की साथी शंकरा ( पूजा सावंत) और फॉरेस्ट ऑफिसर देव भी है। घर लौटने के बाद राज अपने बचपन के साथी हाथियों में भोला और दीदी से मिलकर बहुत खुश होता है और पुराने दिनों को याद करता है, जब उसकी मां जीवित थी और वह अपने गुरु मकरंद देशपांडे  से कलारिपयट्टु का प्रशिक्षण ले रहा था। हाथियों के साथ मौज-मस्ती करने वाले राज को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनकी खुशहाल सेंचुरी और हाथियों पर शिकारी नज़र गड़ाए बैठा है।
हाथी दांत के विदेशी तस्करों के लिए शिकार करनेवाला शिकारी अतुल कुलकर्णी सेंचुरी में आकर हाथी दांत हासिल करने के लिए सबकुछ तहस-नहस कर देता है। इतना ही नहीं वह हाथियों के सरदार भोला और राज के पिता की जान लेकर वहां से भाग निकलता है।
राजू अब राज बन चुका है और रामू का नया नाम है भोला। दोनों की बचपन की दोस्ती है। राज शहर से लौटा है जानवरों का डॉक्टर बनकर। यहां उसे फॉरेस्ट रेंजर देव मिलता है। महावत शंकरा मिलती है और मिलती है जर्नलिस्ट मीरा। जंगल की जिंदगी हसीन ही लगती है जब तक कि इस कहानी में हाथी दांत के तस्करों की एंट्री नहीं होती। इसके बाद फिल्म बदले की कहानी पर आगे बढ़ती है। सिहरा देने वाले एक्शन होते हैं। तलवारें, गोलियां चलती हैं। और, कहानी अपने अंजाम पर पहुंच जाती है।
फिल्म जंगली बच्चों के हिसाब से बनी है। बड़ों वाले तर्क यहां काम नहीं करते। देखने में टाइगर श्रॉफ के बड़े भाई जैसे लगते विद्युत जामवाल ने वह सब किया है जो बच्चों की तालियां पाने लायक है। फिल्म है भी पूरी तरह से विद्युत जामवाल की। परदे पर वह जमते हैं। हिंदी ही नहीं बल्कि किसी भी भारतीय भाषा के सिनेमा में विद्युत जैसा मार्शल एक्सपर्ट दूसरा नहीं मिलता। उलटी गुलाटी मारकर कार से बाहर आने का सीन हो या बाइक पर पीछे की तरफ गिरने का, विद्युत हर सीन में अपनी जान हथेली पर लिए दिखते हैं।


कलाकार: विद्युत जामवाल, पूजा सावंत, आशा भट्ट, अक्षय ओबेरॉय, अतुल कुलकर्णी, मकरंद देशपांडे।

निर्देशक: चक रसेल

स्टार   3.5/5

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